Saturday, September 17, 2016

हुमायूँ के विश्वासघात ने हजारो क्षत्राणियों को जौहर की अग्नि में जलने को विवश कर दिया, Humayun the traitor


चित्तौड़ की महारानी कर्मावती और हुमायूँ-राखी प्रकरण का सच क्या है??

वामपंथी/कांग्रेसी/सेक्युलर पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है कि मध्यकाल में चित्तौड़ की महारानी कर्मावती (कर्मवती अथवा कर्णावती) ने गुजरात के शासक बहादुरशाह के हमले के समय मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजी थी और बदले में हुमायूँ ने भाई का फर्ज निभाते हुए सेना के साथ जाकर रानी कर्मावती और चित्तौड़ की रक्षा की थी,

जबकि ये कोरा झूठ है,सच्चाई क्या है ये जानने के लिए पूरा आर्टिकल जरूर पढ़ें और शेयर भी करें,

जब तक राणा सांगा जीवित थे तब तक उन्होंने मालवा गुजरात और दिल्ली के सुल्तानों को बार बार पराजित किया और किसी मुस्लिम शक्ति की मेवाड़ की ओर आँख उठाने की भी हिम्मत नही थी,लेकिन खानवा के युद्ध के बाद राणा सांगा की मृत्यु हो गयी,इस युद्ध से राजपूत शक्ति को गहरा आघात पहुंचा,और कोई योग्य शासक उस समय मेवाड़ में नही था,ऐसे में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने 1535 ईस्वी में मेवाड़ से बदला चुकाने के लिए एक बड़ी सेना लेकर आक्रमण कर दिया,

इस विकट स्थिति में सहायता की कोई अन्य आशा न देखकर महारानी कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर उससे सहायता मांगी।

दरअसल हुमायूँ सेना लेकर चित्तौड़ की रक्षा के लिए चला जरूर था,लेकिन इसी बीच उसे गुजरात के शासक बहादुरशाह का पत्र मिला जिसने लिखा था कि वो मुसलमानो की तरफ से भारत के सबसे बड़े काफ़िर राज्य के खिलाफ जिहाद कर रहा है,
यह पत्र मिलते ही हुमायूँ भाई का फर्ज भूलकर ग्वालियर में ही रुक गया,और एक माह रुककर वापस चला गया!!!!

कथित राखी भाई से कोई मदद न मिलने पर महाराणा सांगा की पत्नी महारानी कर्मावती ने हजारो क्षत्रिय वीरांगनाओ के साथ मिलकर जौहर की चिता में जलकर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए,और राजपूत सैनिको ने वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए
लेकिन वो धूर्त हुमायूँ इस्लाम और जिहाद के सामने राखी का बन्धन भुला बैठा!!!
जबकि इस धूर्त को विपत्तिकाल में अमरकोट के राजपूत राजपरिवार ने शरण दी थी जहाँ अकबर का जन्म हुआ था।

ये गुजरात का बहादुरशाह भी धर्मपरिवर्तित राजपूतों का ही वंशज था,
इसके पूर्वज हरियाणा के थानेश्वर के नागवंशी टाक राजपूत थे,साहरण टाक ने सल्तनत काल में इस्लाम धर्म गृहण किया और इसे दिल्ली के सुल्तानों ने पहले राजपूताना और बाद में गुजरात का सूबेदार बनाया,
दिल्ली के सुल्तानों के कमजोर होते ही ये स्वतन्त्र हो गया,और मुजफ्फरशाह के नाम से गुजरात की गद्दी पर बैठा।
इसकी कई पीढ़ियों ने गुजरात में राज किया,जिनमे महमूद बेगड़ा और बहादुरशाह प्रमुख थे।
इस धर्मपरिवर्तित राजपूत वंश ने हिंदुओं/राजपूतों पर जुल्म ढाने में तुर्कों मुगलो पठानों को भी पीछे छोड़ दिया,
इस्लाम और जिहाद की भावना के आगे राजपूती रक्त का इनकी नजरो में कोई मान था ही नही।।

जब तक महाराणा कुम्भा और सांगा जैसे शूरवीर मेवाड़ में थे तब तक इन गुजरात और मालवा के सुल्तानों की ओकात नही थी कि वो मेवाड़ की तरफ आँख भी उठाकर देख सकें,
किन्तु खानवा के युद्ध के पश्चात् महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद इन गीदड़ो को मेवाड़ से पुरानी दुश्मनी का हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया।।।
सवतंत्रता प्राप्ति के बाद नेहरू के इशारे पर वामपंथी इतिहासकारो ने छदम हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए मुस्लिमो को महिमामण्डित करने हेतु यह झूठ फैलाया कि हुमायूँ ने हिन्दू रानी कर्मावती द्वारा भेजी गयी राखी की लाज रखते हुए मेवाड़ की मदद की थी,
जबकि सच यह है कि हुमायूँ के विश्वासघात की वजह से ही रानी कर्मावती और हजारो क्षत्राणियों को जौहर की अग्नि में भस्म होना पड़ा था।।

क्या केंद्र की मोदी सरकार देशभर के पाठ्यक्रमो में महारानी कर्मावती हुमायूँ राखी प्रकरण का सच बताने का साहस करेगी??????

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